लद्दाख झड़प: चीन ने एक लेफ्टिनेंट कर्नल, तीन मेजर सहित 10 जवान रिहा किए
अब तक किसी भारतीय के लापता नहीं होने के दावे किए जा रहे थे, लेकिन अब चीन ने बंधक बनाए भारत के 10 सैनिकों को रिहा किया है। इनमें एक लेफ़्टिनेंट कर्नल और 3 मेजर शामिल हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यह रिहाई गुरुवार शाम को हुई। इन सभी को बीते सोमवार को लद्दाख के गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में बंधक बना लिया गया था।
1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद यह पहली बार है कि चीन ने भारतीय सैनिकों को बंधक बना लिया था। आनन-फानन में दोनों पक्षों के बीच चली बातचीत के बाद लाइन ऑफ़ कंट्रोल यानी एलएसी पर इन्हें भारतीय पक्ष को सौंपा गया। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार से लेकर गुरुवार तक मेजर जनरल स्तर पर तीन राउंड की बातचीत चली। जब जवानों को सौंपा गया तो उनकी मेडिकल जाँच जैसी औपचारिकताएँ पूरी की गईं।
इससे पहले ये दावे किए जा रहे थे कि कोई भी सैनिक या सेना का अफ़सर लापता नहीं है। सेना ने गुरुवार की शाम एक बयान जारी कर पुष्टि की थी कि कोई भी सैनिक लापता नहीं था, जिसका मतलब था कि झड़प में शामिल सभी सैनिकों का हिसाब था। बयान में चीनी हिरासत में सैनिकों के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया था।
ये सवाल तब उठे थे जब सूत्रों के हवाले से यह ख़बर आई थी कि कुछ अधिकारी और सैनिक चीनी जवान के कब्जे में थे। दरअसल, लोग सरकार पर यह सवाल उठा रहे हैं कि लद्दाख में चीनी अतिक्रमण और भारतीय जवानों के साथ झड़प के मामले में जानकारी छुपाई जा रही है। इस मामले में तो एक दिन पहले ही विदेश मंत्री के बयान को लेकर भी बवाल हुआ था।
इससे पहले ये दावे किए जा रहे थे कि कोई भी सैनिक या सेना का अफ़सर लापता नहीं है। सेना ने गुरुवार की शाम एक बयान जारी कर पुष्टि की थी कि कोई भी सैनिक लापता नहीं था, जिसका मतलब था कि झड़प में शामिल सभी सैनिकों का हिसाब था। बयान में चीनी हिरासत में सैनिकों के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया था।
ये सवाल तब उठे थे जब सूत्रों के हवाले से यह ख़बर आई थी कि कुछ अधिकारी और सैनिक चीनी जवान के कब्जे में थे। दरअसल, लोग सरकार पर यह सवाल उठा रहे हैं कि लद्दाख में चीनी अतिक्रमण और भारतीय जवानों के साथ झड़प के मामले में जानकारी छुपाई जा रही है। इस मामले में तो एक दिन पहले ही विदेश मंत्री के बयान को लेकर भी बवाल हुआ था।
ताज़ा विवाद इस पर उठा है कि चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ के दौरान भारतीय सैनिकों को कथित तौर पर निहत्थे क्यों भेजा गया। राहुल गाँधी ने सवाल पूछा कि 'हमारे निहत्थे जवानों को वहाँ शहीद होने क्यों भेजा गया?' इस पर जब विदेश मंत्री ने जवाब दिया तो और विवाद खड़ा हो गया।
राहुल के सवाल पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर कहा है, 'आइये हम सीधे तथ्यों की बात करते हैं। सीमा पर सभी सैनिक हमेशा हथियार लेकर जाते हैं, ख़ासकर जब पोस्ट से जाते हैं। 15 जून को गलवान में उन लोगों ने ऐसा किया। फेसऑफ़ (झड़प) के दौरान हथियारों का उपयोग नहीं करना लंबे समय से परंपरा (1996 और 2005 के समझौते के अनुसार) चली आ रही है।'
लेकिन विदेश मंत्री के इस जवाब पर सेना के सेवानिवृत्त अफ़सरों ने ही सवाल खड़े कर दिए। रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग ने इस पर कहा कि यह तो सीमा प्रबंधन के लिए बनी सहमति है, रणनीतिक सैन्य कार्रवाई के दौरान इसका पालन नहीं होता है। उन्होंने कहा है कि जब किसी सैनिक की जान का ख़तरा होता है, वह अपने पास मौजूद किसी भी हथियार का इस्तेमाल कर सकता है।
इस मामले से पहले ही सोशल मीडिया पर लोग इसके लिए आलोचना कर रहे थे कि प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री सहित तमाम मंत्री की ओर से कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आई। मंत्रियों की यह आरोप लगाकर भी आलोचना की जा रही है कि देश को चीन से लगी सीमा पर वास्तविक स्थिति नहीं बताई जा रही है। इन्हीं आरोपों के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बुधवार दोपहर ट्वीट आया। उन्होंने ट्वीट में कहा कि मुश्किल वक़्त में देश कंधे से कंधा मिलकर खड़ा है। इसके बाद प्रधानमंत्री का भी बयान आया और उन्होंने कहा कि हम शांतिप्रिय देश हैं लेकिन कोई उकसाए तो हम जवाब देने में सक्षम हैं। बाद में गृह मंत्री अमित शाह का भी बयान आया। और फिर चीन पर सर्वदलीय बैठक की जानकारी दी गई।
B NEWS
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