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वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे / प्रेस की आजादी के मामले में 180 देशों की सूची में भारत 142वें नंबर पर, चार साल में 9 पायदान खिसका

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे / प्रेस की आजादी के मामले में 180 देशों की सूची में भारत 142वें नंबर पर, चार साल में 9 पायदान खिसका

आज वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे है। हर साल 3 मई को यह दुनियाभर में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद दुनियाभर में प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा तय कराना है। प्रेस स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान बहुत नीचे है। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की सूची में भारत 142वें नंबर पर आता है। पिछले चार सालों से भारत का स्थान लगातार गिर रहा है।
इस मामले में भारत अपने पड़ोसी देश नेपाल (112), भूटान(67), श्री लंका (127) और म्यांमार (139) से पीछे है। हालांकि, पाकिस्तान (145), बांग्लादेश (151) और चीन (177) में भारत से भी खराब स्थिति है। भारत का स्थान पिछले चार सालों से नीचे खिसक रहा है। 2016 में भारत का स्थान 133 था जो 2017 में तीन अंक खिसककर 136, 2018 में 138, 2019 में 140 और 2020 में 142 हो गया। भारत का स्थान पिछले तीन सालों से लगातार दो-दो अंक लुढ़क रहा है।

भारत में पांच साल में पत्रकारों पर हुए 198 हमले

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2014 से 2019 तक पत्रकारों पर 198 हमले हुए हैं। इसमें 36 हमले साल 2019 में हुए। 40 हमलों में पत्रकार की हत्या कर दी गई, जिसमें 21 हत्याएं सीधे तौर पर खबर छापने से नाराज होने पर की गईं। कुल हमलों के तिहाई मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई है।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाने का मकसद

दुनियाभर के कई देशों में पत्रकारों और प्रेस पर अत्याचार होता है। मीडिया संगठनों को सरकारें परेशान करती हैं। उन पर जुर्माना लगाया जाता है, छापा डाल जाता है। साथ ही विज्ञापन बंद कर आर्थिक रूप से नुकसान भी पहुंचाया जाता है। पत्रकारों पर हमले होते हैं। इसके चलते यूनेस्को ने 1993 से वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाने की शुरुआत की थी। इस मौके पर नागरिकों और सरकारों को जिम्मेदार बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। यूनेस्को हर साल इसकी थीम और मेजबान देश तय करता है। इस साल की थीम ‘सेफ्टी ऑफ जर्नलिस्ट-प्रेस फ्रीडम एंड मीडिया कैप्चर’रखी गई और मेजबानी नीदरलैंड को मिली है।

इसलिए तीन मई को मनाया जाता है वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे

अफ्रीका में पत्रकारों ने 1991 में प्रेस की आजादी को लेकर एक पहल की थी। यूनेस्को ने इसको लेकर नामीबिया में एक सम्मेलन किया था। यह सम्मेलन 29 अप्रैल से तीन मई तक चला था। इसके बाद प्रेस की आजादी से जुड़ा एक बयान जारी किया गया था। इसको ‘डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक’ कहा जाता है। दरअसल, विंडहोक नामीबिया की राजधानी है। इस सम्मेलन की दूसरी जयंती 1993 में यूनेस्को औरसंयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल तीन मई को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाने का निर्णय लिया था। तब से हर साल 3 मई को यह दिन मनाया जाता है।

नार्वे पहले नंबर पर और नार्थ कोरिया आखिरी पर

2020 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में नार्वे पहले स्थान पर और नार्थ कोरिया आखिरी नंबर पर है। नार्वे इस लिस्ट में लगातार चार सालों से नंबर एक पर है। वहीं, नार्थ कोरिया इससे पहले 2018 में भी आखिरी स्थान पर था। 2019 में यह एक अंक ऊपर आया था और आखिरी स्थान ईस्ट अफ्रीकी देश इरीट्रिया पहुंच गया था। जब से यह इंडेक्स आया है नार्थ कोरिया और इरीट्रिया ही आखिरी के पायदानों पर बने हुए हैं।

कोरोना महामारी ने मीडिया पर असर डाला

दुनियाभर में पत्रकारों की सुरक्षा पर नजर रखने वाली संस्था (रिपोर्टर विदआउट बॉर्डर ) के महासचिव क्रिस्टोफ डेलोएर ने कहा कि कोरोना महामारी ने दुनियाभर की मीडिया पर गलत असर डाला है। चीन, ईरान और इराक समेत कई ऐसे देश हैं, जहां की मीडिया ने सरकार के दबाव मे सही जानकारी नहीं दी। इराक में कोरोना के आधिकारिक आंकड़ों पर सवाल उठाने वाली स्टोरी प्रकाशित करने पर न्यूज एजेंसी रॉयटर्स का लाइसेंस तीन महीने के लिए रद्द कर दिया गया है। चीन का प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 177, इराक 162 और हंगरी 89 वें स्थान पर है।

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